मजदूरों का सम्मान होना चाहिए.
लाखों मजदुर भुइंया नापे ला धर लिए. रोज कमइया रोज खवइया के पूछ परख करत-करत कतका झेल सहे रिहिस सरकार. कहइया ला का हे मुंह ताय तेला तोपय कोन.
- News18Hindi
- Last Updated:
November 20, 2020, 4:10 PM IST
ये भी पढ़ें : छत्तीसगढ़िया व्यंग्य : उल्टा-पुल्टा होय संसार, नाउ के मुड़ ल मुड़े लोहार
अब देखव देस दुनिया के सड़क, मोटर, हवाई जिहाज अऊ पानी जिहाज ला. तरी उप्पर कोनो मेरन नइये ठिकाना. अंउहा झउवा रेंगई होगे मजदुर परिवार. कोन मेरन खुसरे-खुसरे कतका दिन ले आवत -जावत रिहिन गम नई मिलत रिहिस. सोंटा परे असन महामारी के दुख ला देखिन त देखतेन रहिगिन. अन्न पानी नई सुहाइस, धरारपटा होगे. लइकन -भूख पियास मा तालाबेली करे लागिन तभो ले अपन घर कोती के रद्दा धरइया रेंगे-रेंगे जाबो कहिके भागे लगिन. थकासी हकरासी लागिस तो कोनो मेरन ढलंग जावंय. मिलगे तो खालिन नइते लांघन उपास. जेन मन इनला जगा देके राखे रिहिन तेनो मन दगा दे दिन. काम चलऊ होगे मनखे जात.
उसर पुसर के सरकार, पुलिस, डॉक्टर, समाजसेवी, सबो कोती देखे ताके के जिम्मेदारी बाटिंन. कोनो मेरन अलहन होगे कहिके सुनय त कलबला जांवय फेर काय करन.भीड़ के अजम नई होइस अऊ लॉकडाऊन होगे. सब अपन- अपन घर मा बंद होगे.लाखों मजदुर भुइंया नापे ला धर लिए. रोज कमइया रोज खवइया के पूछ परख करत-करत कतका झेल सहे रिहिस सरकार. कहइया ला का हे मुंह ताय तेला तोपय कोन. परई धरे-धरे कतको झन तोपें ला धरंय फेर तोपावय त. सिरतों बात ए नान्हे लोगन के पुछंतर मौका परे मा होथे.काम निकलगे तहां ले भइगे.
न पइसा न कुउड़ी. न बचत न अनाज
कइसे करके पुहुंची अपन गांव अइसे होगे. गांव पहुंचिन तहां उहों परेशानी. 14दिन ले एके जगा सकलाए रेहे बर आडर होगे. कोरोना के चैन ला टोरना हे कहिके रोका-छेका होगे. सबो दिन एक बरोबर नई होवय सुनत रेहेन अब जान डरेन. अनगिनती आदमी कमाए खाए बर अपन घर ला छोड़ के आने प्रांत मा चल दिन. अपन हिसाब के काम बुता मा लगे राहत अऊ नगदी पइसा कमा धमा के साल मा एक पईत अपन गांव आवय. रंग-रंग के गांव-सहर मा बड़े-बड़े पूंजीपति मनके घरौधिया बुता करइया अपन संग फेसन ला धरके गांव-गांव लावत रइथें.
सब तिड़ीबिड़ी होगे.कतका दिन ले अइसने चलही कहिके चारों मुड़ा सोर होए लागिस .किसे ते पतियाही कोन, कतको घर लानो कानो होगे .पाछू दरवाजा ले खाना पानी मांग-मांग के लाने ला परगे .खाए पीए के सेती अऊ कतको काम ठप्प परगे. चिंता बाढ़गे फेर दिन लहुटही लेकर अगोरा हावय .अऊ ओइसने होइस.
बड़का धन कुबेर मन के जी जंजाल मा फसगे कइसे करके अपन धंधा ला चलाबो – रहिबो भीतरे-भीतर स़ोंचे लागिन. जेन मजदूर-मिस्री वापिस आगे रहिन तेखर मान गौन शुरू होगे. पांव-पयलगी करेला धरलिन पइसा कुढ़ो-कुढ़ो के लागिर पड़े अपन संसार ला सजाने वाला मन फेर जान लगादिन.
समझमा आगे के टुटपुंजिया के ताकत कतका होथे. कुछु नइये तभो ऊंखरे जांगर के सेती सब झन अंटियावत रिहिन. बुता करइया ला नियान नइ परय. अपन करतब (कर्तव्य) ला निभाथेंच. अइसे हे संसार रचइया तोर लीला अपरम्पार हे.
<!–
–>
<!–
–>