झांसी: आज के समय में बेकार को आकार देने की चर्चा हर तरफ हो रही है. सरकारी विभागों से लेकर गैर-सरकारी संगठनों तक का जोर बेकार चीजों को नया रूप देने पर है. लेकिन झांसी के रानीपुर कस्बे के बुनकर कई पीढ़ियों से बेकार को आकार देने का काम करते आ रहे हैं. यह बुनकर कपड़े की कतरन को रीयूज और रिसाइकल करने का काम करते हैं. कपड़े की बेकार कतरन को यहां के बुनकर सुंदर गलीचे का रूप देते हैं.
ताना-बाना बुन कर तैयार करते हैं गलीचा
कई सालों से काम करते आ रहे एक बुनकर जयप्रकाश ने बताया कि सूरत जैसे शहरों से सूटिंग-शर्टिंग की कतरन बड़ी मात्रा में इकट्ठा हो जाती है. जयप्रकाश इस कतरन को खरीद लेते हैं और उस पर काम शुरू करते हैं. सबसे पहले इस कतरन को लकड़ी के छोटे डंडे पर चढ़ाकर पिंडा बनाया जाता है. एक डंडे पर जब कतरन चढ़ जाती है तो उसे बेलन कहा जाता है. इस बेलन को हथकरघा मशीन पर रखा जाता है और फिर उससे सुंदर गलीचा और दरी को तैयार किया जाता है.इसी प्रक्रिया को ताना बाना बुनना कहा जाता है.
चौथी पीढ़ी कर रही है काम
इस प्रकार कतरन से गलीचा तैयार करना मऊरानीपुर के बुनकरों का पुश्तैनी काम है. जयप्रकाश के परिवार की चौथी पीढ़ी भी इस काम को कर रही है. इस काम से वह बेकार को आकार देने के साथ ही अपने ही घर में ही स्वरोजगार भी कर रहे हैं.परिवार के सदस्यों के इस काम में जुड़ जाने की वजह से पलायन की समस्या भी काफी हद तक कम हो सकती है. मऊरानीपुर कस्बा अपनी बुनकरी के काम के लिए पूरे भारत में मशहूर है.
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FIRST PUBLISHED : September 08, 2022, 10:11 IST