बिलासपुर. दहेज प्रताड़ना (dowry harassment) और दहेज हत्या (Murder) के आरोप से ग्रसित पति को हाईकोर्ट (Bilaspur Highcourt) से 23 साल बाद न्याय मिल गया है. हाईकोर्ट ने मृत्युपरांत 4 दिनों बाद लिखाई गई रिपोर्ट और घर से मिले एक पत्र में कही भी जहेज प्रताड़ना का जिक्र नहीं होने को साक्ष्य का अभाव पाते हुए मृतिका के पति को 23 सालों बाद बाइज्जत बरी कर दिया है. लगाए गए आरोप और निचली अदालत से मिले जेल की सजा के आदेश को चुनौती देते हुए पीड़ित पति लक्ष्मीकांत ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. इसमें याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट राहिल अरुण कोचर के साथ एडवोकेट ज्ञानप्रकाश डांडेकर ने याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रखा.
बता दें कि बिलासपुर चकरभाठा थाना क्षेत्र के रहने वाले अशोक कुमार की पुत्री हर्षलता से पेंडारी के रहने वाले लक्ष्मी कांत ने 11 जून 1997 में शादी की थी. आरोप लगाया था कि शादी से पहले ही लक्ष्मीकांत ने दहेज में स्कूटर मांगा. लड़की के पिता ने लूना देना स्वीकार किया. इसके बाद ठीक शादी के वक्त लक्ष्मीकांत ने 10 ग्राम सोना, स्टील की अलमारी, सोफा सेट, टीवी और 5000 नगद मांगे थे. समझाइश के बाद शादी तो हो गया पर लड़की अपने मायके पहुंची तब उसने पति द्वारा दहेज प्रताड़ित करने की बात घर पर बताई. शादी के ठीक 6 माह बाद लक्ष्मी कांत की पत्नी हर्षलता ने आत्मदाह कर लिया.
लड़की के पिता ने किया था केस
हर्षलता के पिता ने चकरभाठा में बेटी के पति और उसके परिवार के खिलाफ दहेज हत्या का अपराध दर्ज करवाया. इसके बाद जिला न्यायालय से पति को सजा हुई और बाद में जमानत हो गया।. लेकिन पत्नी के दहेज हत्या के आरोप का दंश झेल रहे पति लक्ष्मी कांत ने 1999 में निचले अदालत द्वारा दिए गए सजा को अपने अधिवक्ता राहिल अरुण कोचर और ज्ञान प्रकाश डांडेकर के माध्यम से चुनौती दी. इसमें अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत कर कहा कि हर्षलता के आत्मदाह के 4 दिन बाद पिता द्वारा रिपोर्ट दर्ज करवाया गया. साथ ही जिस पत्र के बरामद किए जाने को साक्ष्य माना गया वह पत्र पति के लिए लिखा गया प्रेम पत्र है, जिसमें कही भी दहेज प्रताड़ना का जिक्र नहीं है. पूरे मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट जस्टिस रजनी दुबे के सिंगल बेंच ने साक्ष्यों के अभाव पाते हुए लक्ष्मी कांत को बाइज्जत बरी कर दिया है.
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