अप्रैल खत्म होते ही मई-जून महीने की जैसे शुरुवात होती है वैसे वैसे सभी जल स्रोत सूख जाते है और इस सूरज की इस तपन को सहकर पाठा की महिलायें मीलों पैदल चलकर अपने सर में भारी वजन वाले बर्तन रख कर पानी लाती है. शायद इसीलिये पाठा में कहावत है ‘एक टक सूप – सवा टक मटकी, आग लगे रुखमा ददरी, भौरा तेरा पानी ग़ज़ब करी जाए, गगरी न फूटै, चाहै खसम मर जाय. यह पानी यहां के निवासियों के लिये अमृत के समान होता है. महिलाये तो पानी को पति से भी ज़्यादा मूल्यवान समझती है. चित्रकूट जिले की तहसील मानिकपुर अन्तर्गत में आने वाले जमुनिहाई, गोपीपुर, खिचड़ी, बेलहा,एलाहा, उचाडीह गांव,अमचूर नेरुआ,बहिलपुरवा,जैसे दर्जनों गांवों के हजारों ग्रामीणों को पेयजल संकट की त्रासदी ज़्यादा नजदीक से दिखाई पड़ती है. शायद इसलिए कोई अपनी बेटियों की शादी इस गांव में नहीं करना चाहता है. यही कारण है कि गांव में दर्जनों लड़के शादी की आस में कुंवारे बैठे है कि कब पानी की समस्या खत्म हो और उनकी शादी हो जाये.