Prayagraj:- शिक्षा (education)वह प्रभावशाली हथियार है जो अगर बच्चों को सही समय पर दिया जाए तो वह आगे चलकर देश और समाज को विकास के रास्ते पर ले जा सकते हैं,समाज की धुंधली तस्वीर में जान डाल सकते हैं.बच्चे अपने और देश के भविष्य को उज्जवल कर सकते हैं,अच्छे और बुरे में फर्क कर सकते हैं और ना जाने क्या-क्या जो एक इंसान अपने जीवन को सफल बनाने के लिए करता है.शिक्षा की महत्ता और इसकी ताकत को पहचानते हुए संविधान में भी शिक्षा के अधिकार को प्रभावी बनाया गया है.शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया है.सर्व शिक्षा अभियान के तहत नारा दिया गया है कि सब पढ़ें और सब बढ़ें.देश ही नहीं दुनिया की सरकारें भी इसके लिए लगातार प्रयासरत हैं और इस दिशा में बेहतर से बेहतर काम करने के लिए अग्रसर हैं.लेकिन जब हम सड़कों पर चलते हैं,घरों से बाहर निकलते हैं तो समाज की एक दूसरी ही तस्वीर सामने आती है.जिस उम्र में बच्चों को स्कूल जाना चाहिए, शिक्षित होना चाहिए उस उम्र में बच्चे भीख मांगते नजर आते हैं, दुकानों पर काम करते नजर आते हैं.यह तस्वीरें मन में सवाल उठाती है कि शिक्षा के मौलिक अधिकार का क्या? सरकारों के बड़े बड़े स्तर पर किए जा रहे प्रयास और लक्ष्यों का क्या? क्या यह कोशिशें रंग नहीं ला रही हैं? दरअसल समस्या बढ़ी है और प्रयास छोटे.ऐसे में हमें और आपको सरकार का सहयोग करना होगा और अपने स्तर पर छोटे-छोटे ही सही लेकिन प्रयास करने होंगे.बच्चों को स्कूल तक भेजना होगा.ऐसे ही जज्बे के साथ 6 सालों से लगातार प्रयासरत है,प्रयागराज की शुरुआत- एक ज्योति शिक्षा की संस्था.जो गरीब और सड़क पर रह रहे बच्चों को गरीबी के अंधेरे से निकालकर शिक्षा की रोशनी में ले जा रही है.
‘शुरुआत’ की इस शुरुआत ने बदली है 150 से ज्यादा गरीब बच्चों की जिंदगी
शुरूआत संस्था में आज 150 से ज्यादा गरीब और सड़क पर रह रहे बच्चों का भविष्य संवर रहा है.यह वह बच्चे हैं जो कभी सड़कों पर भीख मांगा करते थे या फिर लोगों के घरों में काम किया करते थे.लेकिन आज वे स्कूल जाते हैं और पढ़ते लिखते हैं.शुरुआत संस्था के संचालक अभिषेक शुक्ला जी कहते हैं कि उनकी संस्था एक बदलाव के लिए काम कर रही है.यह बदलाव है बच्चों को गरीबी के अंधकार से निकालकर शिक्षा की रोशनी में ले जाना.उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना,उनका आने वाला कल सुरक्षित और उज्जवल हो इसके लिए उन्हें गरीब और मलिन बस्ती से निकालकर स्कूल का रास्ता दिखाना.क्योंकि गरीब बच्चे स्कूल जाने में सक्षम नहीं हैं इसलिए यह संस्था गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देती है लगभग 30 लोगों की टीम इन बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रही है.अभिषेक शुक्ला जी बताते हैं कि 6 साल पहले उन्होंने यह शुरुआत 4 से 5 बच्चों से की थी लेकिन 6 साल के सफर में डेढ़ सौ से ज्यादा बच्चे आज इस संस्था में आकर पढ़ते हैं.अलग-अलग विषयों के शिक्षक उन्हें विषय की मूलभूत जानकारी देते हैं.यहां पर उन्हें सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं बल्कि तकनीकी रूप से भी शिक्षित किया जाता है.कंप्यूटर की बेसिक नॉलेज भी यहां बनी लैब में बच्चों को दी जाती है.
आसान नहीं था यह रास्ता, हौसलों की उड़ान से पार होती गयीं सारी बाधाएं
शुरुआत संस्था आज शहर की वह संस्था है जहां गरीब बच्चों के मां-बाप अपने बच्चों को विश्वास और एक उम्मीद के साथ भेजते हैं.लेकिन विश्वास और इस उम्मीद को कमाने में 6 साल का वक्त लगा.यह रास्ता आसान नहीं था.अभिषेक जी और उनकी टीम बताती है कि शुरू में मां-बाप बात सुनने को भी तैयार नहीं होते थे,वह हंसते थे और कहते थे कि सभी की तरह वह भी सिर्फ अपने प्रचार के लिए आए हैं.लेकिन मन के हौसले और खुद के विश्वास ने लोगों को उम्मीद की राह दिखाई.टीम की सदस्य अवंतिका मिश्रा बताती हैं कि पहले बच्चे स्कूल से गायब रहते थे, 2 दिन आते थे और 4 दिन गायब हो जाते थे लेकिन नियमितता बनाने में उन्हें और उनकी टीम को बड़ी मेहनत करनी पड़ी.आज बच्चे रोज स्कूल आते हैं और उत्साह के साथ पढ़ते हैं.कभी आर्थिक समस्या तो कभी लोगों का साथ नहीं मिलता था.ऐसी तमाम समस्याएं आए दिन आती थीं लेकिन टीम के साथ और उनके जज्बे ने राह में आने वाली सारी बाधाओं को पार किया.यह संस्था ना सिर्फ गरीब बच्चों को पढ़ाती है बल्कि उन बच्चों के मां-बाप की सोच को बदलने की दिशा में भी बेहतर काम कर रही है.जो पहले यह सोचते थे कि अगर बच्चा पढ़ने गया तो आय का स्रोत कम हो जाएगा और अगर भीख मांगेगा तो घर में चार पैसे आएंगे.लेकिन आज वह मां-बाप खुद अपने बच्चों को शुरुआत के स्कूल तक छोड़ कर आते हैं.अभिषेक जी और उनकी टीम कहती है कि यह सकारात्मक बदलाव ही हमें आगे बढ़ने के लिए रोज प्रेरित करता है.
(प्रयागराज से प्राची शर्मा की रिपोर्ट)
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