नई दिल्ली. अपने तरह के इस अमानवीय और खौफनाक घटना में एक महिला (woman) ने भारी प्रसव पीड़ा (labour pain) सहकर जुड़वा बच्चे को जन्म दिया. इसके बाद भी महिला दर्द से कराहती रही. परिवार वालों ने डॉक्टर (Doctor) से बढ़िया इलाज की गुहार लगाई लेकिन लापरवाह डॉक्टर वहां से चली गई. दर्द से कराहती महिला को इस अस्पताल से उस उस्पताल ले जाना पड़ा लेकिन कुछ ही दिनों बाद उसकी दर्दनाक मौत हो गई. परिवार वालों ने महिला को न्याय दिलाने के लिए 11 साल तक संघर्ष किया. अंततः सत्य की जीत हुई और राज्य उपभोक्ता आयोग ने डॉक्टर को 18 लाख रुपये मुआवजा भरने का आदेश दिया.
क्या है मामला
यह मामला है अहमदाबाद का. अगस्त 2010 में आणंद जिले की 26 साल की एक महिला को प्रसव पीड़ा के बाद श्री मैटरनिटी एंड नर्सिंग होम में भर्ती करवाया गया. इसके बाद डॉ शेफाली शाह ने महिला का सीजेरियन कर दिया. इससे महिला को जुड़वा बच्चे हुए. डिलिवरी के बाद महिला फिर दर्द से कराहने लगी. डॉ शेफाली नर्स के भरोसे छोड़कर वहां से चली गई. पीड़ित महिला की परेशानी बहुत ज्यादा बढ़ गई. उसका ब्लड प्रेशर बढ़ गया और बेतहाशा ब्लीडिंग होने लगी. महिला के दर्द का कोई अंत नहीं था. इसके बाद कार्डियोलॉजिस्ट को बुलाया गया. उन्होंने महिला को तीन से चार बोतल खून चढ़ाया. इसके बाद नादिदाद किडनी अस्पताल में महिला को डायलेसिस पर रखा गया. लेकिन वहां भी महिला सही नहीं हो सकी और कौमा में जाने के तीन महीने बाद महिला की मौत हो गई.
जिला आयोग में डॉक्टर की जीत
परिवार वालों ने आणंद जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में डॉ शेफाली के खिलाफ शिकायत दर्ज की. महिला के वकील ने आरोप लगाया कि प्रसव पीड़ा के समय महिला का हिमोग्लोबिन स्तर बहुत कम था. इसके बावजूद पैसे बनाने के लिए डॉक्टर ने सीजेरियन कर दिया. ऑपरेशन के बाद महिला को नर्स के भरोसे छोड़ दिया गया. यह लापरवाही का जीता-जागता सबूत है जिसमें डॉक्टर ने पैसे बनाने के चक्कर में महिला को मरता हुआ छोड़कर चली गई. इस पर डॉक्टर के वकील ने कहा कि ऑपरेशन के समय महिला नॉर्मल थी. बाद में ब्लड प्रेशर बढ़ा और सहमति से महिला को किडनी अस्पताल में भर्ती करवाया गया. अब किडनी क्यों फेल हुई, इसकी जिम्मेदारी डॉ शेफाली की नहीं है. जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में यह मामला निरस्त कर दिया गया.
8 प्रतिशत ब्याज के साथ 18 लाख रुपये का हर्जाना
इस फैसले के खिलाफ राज्य आयोग में शिकायत दर्ज की गई. राज्य आयोग ने फैसले में कहा महिला का डिलिवरी से पहले भी हिमोग्लोबिन कम था और ऑपरेशन के बाद भी कम हो गया. इसके बावजूद डॉक्टर ने सिर्फ एक बोतल खून रिजर्व में रखा जबकि बाद में तीन बोतल चढ़ानी पड़ी. यह अपने आप में लापरवाही है. वहीं जब महिला की तबियत बिगड़ने लगी तो डॉक्टर गायब थी. लिहाजा इतनी कम उम्र में महिला की मौत की भारपाई किसी मुआवजा से नहीं हो सकती. न ही बच्चे के लिए मां का प्यार लौटाया जा सकता है. लेकिन यह मामला पूरी तरह लापरवाही का है इसलिए डॉ शेफाली 10.75 लाख रुपये मुआवजा देना होगा. इसके अलावा 8 लाख रुपये मेडिकल खर्च के रूप में भी चुकाना होगा. इस पर मौत की तारीख के दिन से 8 प्रतिशत ब्याज भी देना होगा.
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