अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और भारत के पीएम मोदी (फाइल फोटो)
जॉन केरी (John Kerry) की यात्रा का मकसद है कि भारत को 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का संकल्प लेने के लिए राजी किया जा सके. अमेरिका (America) चाहता कि भारत अपना पुराना रुख छोड़े. मगर भारत अभी नेट-जीरो एमिशन का विरोध कर रहा है.
आज तक की एक खबर के अनुसार, अमेरिका वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने की मुहिम का नेतृत्व फिर से हासिल करने के प्रयास में है. उसका मकसद है कि 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो यानी नगण्य कर दिया जाए. ब्रिटेन और फ्रांस सहित कई अन्य देशों ने पहले से ही कानून बनाए हैं, जो इस सदी के मध्य तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य रखते हैं. यूरोपीय संघ भी ऐसा कानून बनाने पर काम कर रहा है जबकि कनाडा, दक्षिण कोरिया, जापान और जर्मनी सहित कई अन्य देशों ने नेट जीरो को लेकर अपने इरादे जाहिर किए हैं. यहां तक कि चीन ने 2060 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का वादा किया है.
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भारत कर रहा नेट-जीरो एमिशन का विरोधअमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन करने वाला देश है. जॉन केरी की यात्रा का मकसद यह है कि भारत को 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का संकल्प लेने के लिए राजी किया जा सके. अमेरिका चाहता कि भारत अपना पुराना रुख छोड़े. मगर भारत अभी नेट-जीरो एमिशन का विरोध कर रहा है क्योंकि उसे इससे सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है, उसे अपनी विकास दर को तेज करना है ताकि सैकड़ों करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला जा सके. जंगल बढ़ाने या कोई अन्य उपाय करने से उत्सर्जन की भरपाई नहीं की जा सकती है. अभी कार्बन हटाने वाली अधिकांश तकनीकें या तो अविश्वसनीय हैं या बहुत महंगी हैं.