बीते कुछ दिनों से लगातार ताज महल की मुख्य इमारत के नीचे बने 22 कमरे खोलने को लेकर हंगामा किया जा रहा है. तर्क ये दिया जा रहा है कि ये पहले राजपूत महल था. क्या वास्तव में ऐसा था. साथ में यह भी दावा किया जा रहा है कि राजा जय सिंह से यह जमीन जबरन ली गई थी. ऐतिहासिक प्रमाण इस बात को सिरे से खारिज करते हैं. जाने माने इतिहासकार आर. नाथ ने 1972 में लिखी अपने अपनी किताब द इम्मोर्टल ताज महल, द एवोल्यूशन ऑफ टूंब इन मुगल आर्किटेक्चर में पेज 54 पर ताज महल के कोई राजपूत पैलेस होने की बात को सख्ती से खारिज किया है. आर. नाथ लिखते हैं कि फारसी दस्तावेज और विदेश यात्रियों के संस्मरण जैसे कि पीटर मुंडी, ट्रेवर्नियर, मनुच्ची और बर्नियर ने इस बात के पुख्ता प्रमाण रखे हैं कि किसी राजपूत महल को बदल कर ताज महल नहीं बना है. यह बहस सिरे से गलत है.
अगर हम देखें तो ताज महल के लिए ली गई जमीन दरअसल आमेर के राजा जय सिंह की थी और बादशाहनामा के लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी ने वॉल्यूम 1 पेज नंबर 388 से 403 के बीच में जो लिखा है वह इस बात को एकदम साफ करता है कि यह जमीन राजा सिंह से उसकी सहमति से ली गई थी और इस जमीन के बदले राजा जय सिंह को दूसरी जमीन दी गई थी.
लाहौरी ने पेज 403 पर क्या लिखा- वा जामिन ए दर निहायत रिफात व नुज्जत हत की जुनूब रोया अन मिसरा जामा अस्त- यानी आगरा में एक जमीन का टुकड़ा (जामिन) उसके (मुमताज के) दफन के लिए चुना गया.
403 पेज पर ही लाहौरी लिखते हैं- व पेश अजीन मंजिल राजा मान सिंह बूद – व दरी व बक्त राजा जय सिंह नबी राया ऊ तालुकदसल्त. यहां मंजिल का अर्थ रुकने की जगह से है. यह जमीन का टुकड़ा राजा मान सिंह का था जो अब उनके नाती राजा जय सिंह के पास था.
लाहौरी, वॉल्यूम 1 पेज 403- बराया मदफन अनबहिश्त मौतिन बर गुजिदान…अगरचे राजा जय सिंह हुसून एन दौलत रा फौज ए अजीम दानिश्त. जिस जमीन के टुकड़े को मुमताज महल के शव के दफन के लिन चुना गया उसे राजा जय सिंह ने खुशी-खुशी देना स्वीकार किया.
लाहौरी, वॉल्यूम 1 पेज 403- दर आवेज अन आली मंजिल अज खालसाया शारिफा बऊ मनहमत फरमुदंद. यहां दर आवेज का अर्थ है बदले में, खालसा का अर्थ है शाही जमीन. लाहौरी ने यहां साफ किया है कि राजा जय सिंह ने ताज महल वाली जमीन के बदले दूसरी जमीन लेना स्वीकार कर लिया. लाहौरी के बयानों की मुहम्मद सालिह कांबो ने अमल इ सालिह में वन के पेज 448-52 पर तस्दीक की है.
ताज महल के निर्माण के लिए राजा जय सिंह को 1632 से 37 के बीच कई फरमान लिखे गए जिसमें से तीन की स्पष्ट जानकारी मौजूद है-
पहला फरमान 21 जनवरी 1632 को भेजा गया, जिसमें राजा जय सिंह से कहा गया कि मकराना से जितने अधिक से अधिक बैलगाड़ियां पत्थर की भेजी जा सकें वह राजधानी में भेजें. दूसरा फरमान सितंबर 1632 में लिखा गया जिसमें कहा गया कि मुल्कशाह को मकराना से पत्थर लाने के लिए आमेर में नियुक्त किया गया है. यह उम्मीद की जाती है कि आप उन्हें माल जमा करवाने और राजधानी पहुंचाने में मदद करेंगे. इन पत्थरों की कीमत की अदायगी वहीं शाही खजाने से की जाएगी. तीसरा फरमान 21 जून 1637 का है जिसमें बादशाह ने कहा कि आपने कुछ पत्थर तोड़ने वाले कारीगर अपने पास रोक लिए हैं उन्हें कृपया जल्दी छोड़ें ताकि पत्थर लाने के काम में तेजी आ सके.
क्यों बंद हैं कमरे
कमरे दरअसल एएसआई ने ताज महल की सुरक्षा को देखते हुए बंद किए हुए हैं. नीचे जाने के लिए ताज महल में मुख्य इमारत के ठीक पीछ यमुना की तरफ से नीचे सीढ़िया गई हुई हैं. एक नहीं कई बार अंग्रेजों के दौर में (लार्ड कर्जन के वक्त) बाद में जब इसके रख रखाव का जिम्मा एएसआई यानी आर्कियोलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया को दिया गया तब उन्हें मरम्मत और रख रखाव के लिए खोला गया था. सन 2004 में भी कमरों को खोलकर उनकी मरम्मत की गई है. कमरे लगातार न खोलना दरअसल ताज महल की सुरक्षा की नजर से बेहद जरूरी है. यहां गौर करने वाली बात है कि किसी भी संरक्षण कार्य के दौरान एएसआई ने इसके राजपूत पैलेस होने की कोई बात नहीं कही है. ये आरोप आधारहीन नजर आते हैं जिसपर कम से कम एएसआई को बयान जरूर करना चाहिए.
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FIRST PUBLISHED : May 12, 2022, 15:28 IST