नवनीत सिकेरा, उत्तर प्रदेश कैडर के 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. इनकी ज़िन्दगी के कुछ हिस्सों से प्रभावित हो कर लेखक मण्डली आशीष मोहिमें, जय शीला बंसल और जतिन वागले ने एम्एक्स प्लेयर के लिए एक महत्वकांक्षी 10 एपिसोड की वेब सीरीज का निर्माण किया था – भौकाल. पहला सीजन 2020 में रिलीज़ किया गया था और अब उसका दूसरा सीजन रिलीज किया गया है और इसमें भी 10 एपिसोड हैं. पहला सीजन जितना प्रभावी था, दूसरा सीजन उतना ही कन्फ्यूज नजर आता है. कहानी में पात्रों की भरमार नहीं की है लेकिन कैरेक्टर आर्टिस्ट्स इतने हैं कि कई बार उनकी उपयोगिता समझ नहीं आती. सीजन 2 कमज़ोर होने के बावजूद कुछ कुछ दृश्यों में उत्तर प्रदेश के अंदरूनी कस्बों और गांवों के बीच चल रहे वर्चस्व के दंगल को खुल के उजागर करता है. सीजन 1 के चाहने वालों को सीजन 2 में कम मज़ा आएगा. पहले और दूसरे सीजन की रिलीज के बीच इतना अरसा गुजर चुका है कि लोगों को शायद सीजन 1 फिर से देखना पड़ेगा. इसका एक कारण ये भी है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर उत्तर प्रदेश के अपराध की दुनिया पर कई सारी वेब सीरीज आ चुकी हैं.
पहले सीजन में एसएसपी नवीन सिखेरा (मोहित रैना) मुज़फ्फरनगर के सबसे कुख्यात गैंगस्टर शौक़ीन (अभिमन्यु सिंह) के अपराध साम्राज्य को ख़त्म कर के पूर्वी इलाके के लोगों की ज़िन्दगी में अमन और चैन लाते हैं. सीजन 2 में पश्चिमी इलाके के ‘डेढ़ा’ ब्रदर्स यानी चिंटू (सिद्धार्थ कपूर) और पिंटू (प्रदीप नागर) की बारी है नवीन से भिड़ने की, उन्हें ख़त्म करने की और पुलिस प्रशासन के सामने हैवानियत का साम्राज्य खड़ा करने की. इसके लिए वो हर षडयंत्र करने को तैयार हैं, गुंडागर्दी और खून खराबा करने से नहीं चूकते, यहाँ तक कि नवीन के ड्राइवर को भी अपनी और मिला लेते हैं ताकि नवीन पर नजर रखी जा सके और सही समय पर उसे ख़त्म किया जा सके. शौक़ीन की बेवा नाज़ (बिदिता बेग), और मुजफ्फरपुर का असली बॉस यानि राजनीतिक बॉस असलम राणा (मेजर बिक्रमजीत कँवरपाल) भी डेढ़ा ब्रदर्स की मदद करते हैं. करीब दस एपिसोड गुजरने के बाद, ईंट के भट्टे पर एक शूट आउट में हाथापाई के बाद नवीन पहले पिंटू को मार देते हैं और फिर चिंटू को दौड़ा कर बीच सड़क में गोली मार कर इस सीजन की इतिश्री की जाती है.
भरपूर गालियां हैं हर एपिसोड में. कई बार तो ऐसा लगता है कि विलन प्रजाति के लोग बिना गालियों के “राम राम” भी नहीं करते. सीजन 2 कमज़ोर है हर लिहाज से. पहले सीजन में अभिमन्यु सिंह का कद्दावर अभिनय और उसका खूंखार चेहरा, दर्शकों को प्रभावित करता है. इस बार प्रदीप नागर से ये उम्मीद की गयी है. प्रदीप का चेहरा घृणा पैदा करता है लेकिन उस से डर नहीं लगता. सिद्धार्थ कपूर की कद काठी ऐसी नहीं है कि उस को विलन समझा जाये। उसका किरदार कैजुअल सा है. एक बड़े अपराध साम्राज्य के लिए इस तरह का शख्स बिलकुल ठीक नहीं लगता. मोहित रैना को दोनों सीजन में एक जैसा एक्सप्रेशन रखना था. वैसे भी वो अभिनय के लिए नहीं अपनी शक्ल और कदकाठी के लिए जाने जाते हैं. दूसरे सीजन में मोहित के चेहरे पर बोरियत दिखाई देती है क्योंकि हर एपिसोड में उनका रोल एक जैसा ही है. कुछ और किरदार हैं जिनमें स्वर्गीय अभिनेता मेजर बिक्रमजीत कंवरपाल भी शामिल हैं. उन्होंने अच्छा काम किया था और निर्माताओं ने ये पूरा सीजन उन्हीं को समर्पित किया है. बिदिता बेग को कम काम मिलता है और उनके रोल्स भी एक जैसे ही होते हैं. उनकी आँखों में सम्मोहन है और उन्हें बेहतर रोल्स की तलाश है.
लेखक मंडली आशीष, जय और जतिन ने इस सीजन को लिखने में कतई मेहनत नहीं की है. दर्शक चौंके नहीं हैं, उनके लिए कुछ भी नया नहीं है. मिर्ज़ापुर देख चुके दर्शक अब उत्तर प्रदेश की गुंडागर्दी और बाहुबली प्रथा से खासे परिचित हैं. भौकाल में भौकाल ही नहीं बना है किसी का. पुलिस का भौकाल बनना ज़रूरी था लेकिन अपराधियों का कैरेक्टर ग्राफ बहुत ही कमज़ोर है. वेब सीरीज में बैक स्टोरी दिखा कर किरदार का मोटिव समझाया जा सकता है लेकिन भौकाल 2 ऐसा कुछ नहीं करता जबकि सीजन 1 में सब कुछ रहा है. संभवतः इस सीजन को इसीलिए इतना प्रमोट भी नहीं किया जा रहा है. सिनेमेटोग्राफर सुमित समद्दर का काम एवरेज ही कहा जायेगा. कुछ शॉट्स में बजट की कमी नज़र आती है खास कर गांव में डेढ़ा ब्रदर्स द्वारा सरपंच की हत्या के और नवीन सिखेरा की बिदाई के (क्लाइमेक्स). एडिटर उमेश गुप्ता को शायद सबसे अच्छे शॉट्स लेकर डालने जितना काम मिला होगा क्योंकि कहानी एक सीध में चलती रहती है. उतार चढ़ाव, फ्लैशबैक, फ़्लैश फॉरवर्ड जैसे सिनेमेटिक टूल्स से कहानी दूर ही रही है. कुल जमा, भौकाल 2 कमजोर है. पहले सीजन को पसंद करने वालों को निराशा हाथ लगेगी.
डिटेल्ड रेटिंग
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