बीजापुर सुकमा के बीच हुई मुठभेड़ में एक महिला कमांडर समेत 12 माओवादी मारे गए हैं.
Bijapur Encounter: नक्सलियों का नेता हिड़मा इस तरह के हमले का मास्टरमाइंड बताया जाता है. 1.5 करोड़ के इनामी माओवादी रमन्ना के मारे जाने के बाद हिड़मा को नक्सलियों ने अपना नेता चुना है.
बीएसएफ से रिटायर्ड कमांडेंट लईक अहमद सिद्दीकी बताते हैं, ‘फरवरी के बाद मौसम में बदलाव होता है. पतझड़ के मौसम के चलते जंगल में बड़े बदलाव आते हैं. पेड़ों पर पत्ते नहीं रहते, जिसके चलते दूर ऊंचाई पर बैठे नक्सली जवानों की मूवमेंट को आसानी से देखते रहते हैं. यही वजह है कि पूरे साल बड़े हमलों का इंतजार करने वाले नक्सली टीसीओसी को फरवरी-जून में अंजाम देते हैं.’

ऐसे बिछाया जाता है टीसीओसी का जाल
नक्सल प्रभावित इलाका हो या फिर आतंकवाद से ग्रस्त कश्मीर और नॉर्थ-ईस्ट, हर जगह सुरक्षा बल रूटीन गश्त करते हैं. खासतौर से नक्सली TCOC के तहत सुरक्षा बलों को अपने जाल में फंसाने की कोशिश करते हैं. अपने ही लोगों से सुरक्षा बलों तक कई तरह की झूठी सूचनाएं पहुंचाते हैं. जैसे नक्सलियों के बड़े नेता एक जगह मीटिंग के लिए जमा होने वाले हैं. नक्सली बड़ी संख्या में जमा हो रहे हैं और किसी बड़े हमले को अंजाम दे सकते हैं.
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टीसीओसी का जाल बिछाकर दे चुके हैं बड़े हमलों को अंजाम
नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच हुई अब तक की सबसे बड़ी मुठभेड़ सुकमा की ही बताई जाती है. 6 अप्रैल 2010 को नक्सली हमले में 76 जवान शहीद हो गए थे. अप्रैल 2017 के बुर्कापाल हमले में 25 जवान शहीद हुए थे. मार्च 2018 में पलोड़ी के हमले में 9 जवान शहीद हुए थे. सुकमा के ही भेज्जी इलाके में 11 मार्च 2017 को हुए हमले में 12 जवान शहीद हुए थे. जानकार बताते हैं कि ज़्यादातर बड़े हमले इसी मौसम का फायदा उठाते हुए किए गए हैं.
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