लखनऊ: उत्तर प्रदेश में महज तीन मिनट के भीतर ही समाजवादी पार्टी से टिकट लेने वालीं रूपाली दीक्षित इन दिनों चर्चा में हैं. आगरा जिले की फतेहाबाद विधानसभा सीट (Fatehabad Assembly Seat) से समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की उम्मीदवार रूपाली दीक्षित (Rupali Dikshit) को अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से टिकट मिला है. समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को फतेहाबाद से विधानसभा सीट से टिकट देने के लिए राजी करने में रूपाली दीक्षित को सिर्फ तीन मिनट का समय लगा. टिकट की दावेदारी के लिए रूपाली ने जो दलीलें दीं, उनमें भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के उस वीडियो क्लिप का भी जिक्र किया गया था, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर उसके पिता (जो हत्या के केस में जेल में बंद हैं) और ठाकुर समुदाय का अपमान किया.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, ‘अपमान’ का बदला लेने की इच्छा जाहिर करते हुए रूपाली दीक्षित का कहना कि वह जातिवाद में विश्वास नहीं रखती हैं. वह सरकारी योजनाओं में गरीबों के लिए पारदर्शी और उचित आवंटन चाहती हैं. मैं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिली और उन्होंने मुझसे पूछा कि मुझे क्या चाहिए. मैंने कहा कि मैं आपत्तिजनक टिप्पणी की वजह से भाजपा उम्मीदवार छोटेलाल वर्मा के खिलाफ लड़ना चाहती हूं और मैं आपसे यह भी वादा करती हूं कि मैं यह सीट जीतूंगी.
इसके बाद समाजवादी पार्टी ने रूपाली दीक्षित के लिए उस कैंडिडेट का पत्ता काट दिया, जिसे वह पहले सेलेक्ट कर चुकी थी. यहां गौर करने वाली बात है कि समाजवादी पार्टी ने फतेहाबाद विधानसभा से पहले राजेश कुमार शर्मा को प्रत्याशी बनाया था, हालांकि करीब 36 घंटे बाद ही अपना प्रत्याशी बदलकर रूपाली दीक्षित को टिकट दे दिया. 34 वर्षीय रूपाली कानून से स्नातक कर चुकी हैं, जिनके पास यूनाइटेड किंगडम के विश्वविद्यालयों से दो स्नातकोत्तर डिग्री भी हैं. रूपाली पुणे के सिम्बॉयसिस इंस्टिट्यूट से ग्रेजुएशन करने के बाद 2009 में इंग्लैंड चली गई थीं. वहां कार्डिफ यूनिवर्सिटी से उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन किया और दुबई में उनकी अच्छी नौकरी लग गई. दीक्षित ने दुबई में एक बहुराष्ट्रीय फर्म में तीन साल तक काम किया.
रूपाली के पिता अशोक दीक्षित (जो कभी सपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे) 2007 से जेल में हैं. जब उन्हें, उनके चाचा और तीन अन्य रिश्तेदारों को स्कूल शिक्षक सुमन दुबे की हत्या के आरोप में 2015 में फिरोजाबाद की एक अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, तब उन्होंने एमएनसी की नौकरी छोड़कर वापस लौटने का फैसला किया. कभी बाहुबली कहे जाने वाले अशोक दीक्षित 1996 में सपा के टिकट पर लड़े थे और फिर 2022 में बसपा से टिकट मिला था. 2007 में वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़े थे और उसी साल उनकी गिरफ्तारी हुई थी. वह तीनों ही बार चुनाव हार गए थे.
रूपाली ने बताया कि अपने पिता के एक कॉल के बाद मैं 2015 में अपने परिवार और उनके बिजनेस को संभालने के लिए भारत वापस आ गई. रूपाली ने अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए फतेहाबाद को अपनी कर्मभूमि बनाया. रूपाली दीक्षित ने भाजपा से भी टिकट लेने का प्रयास किया था. दीक्षित ने सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी के साथ अपनी किस्मत आजमाई. उन्होंने कहा कि मेरी वापसी के बाद मैंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए काम करना और लोगों से मिलना शुरू किया. मैं 2017 में भाजपा में शामिल हुई और इसके उम्मीदवार जितेंद्र वर्मा के लिए प्रचार किया, जिन्होंने चुनाव भी जीता था.
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