रिपोर्ट-अंजलि सिंह राजपूत
लखनऊ. नजाकत और नफासत के शहर लखनऊ को नवाबों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है. कभी शानो शौकत से जिंदगी जीने वाले मशहूर नवाबों की लाइफ स्टाइल भी अब बदलते दौर के साथ बदल गई है, लेकिन अपने पुरखों की विरासत को आज भी न सिर्फ सुनहरी यादों के तौर पर संजोए रखा है बल्कि उससे ही आज भी उनका व्यवसाय चलता है. उनके वंशज नवाब जाफर मीर अब्दुल्लाह की चौक में बनी एक 100 साल पुरानी हवेली में रहते हैं. इनके नवाब सफदर अली खान और सज्जाद अली खान ईरान के शहर ने शाबुर से अवध आए थे. उस समय अवध में नवाब आसफुद्दौला का राज हुआ करता था. नवाब जाफर मीर अब्दुल्लाह ने अपनी हवेली में एक ऐसा कमरा बनवा रखा है, जिसमें उन्होंने अपने नवाबों के वक्त में इस्तेमाल किए गए बेहद दुर्लभ सामानों को सहेज के रखा हुआ है.
इन सामानों को देखने के लिए न सिर्फ हिंदुस्तान की सरजमीं से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. इतना ही नहीं विदेशों में इनके सामानों पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बन चुकी है. नवाब जाफर मीर अब्दुल्लाह अपने पिता मीर अब्दुल्लाह और मां जहां बेगम के परंपरागत व्यापार क्युरियो (Curio) को आगे बढ़ा रहे हैं.
बॉलीवुड इनके सामानों का है दीवाना
नवाब जाफर मीर अब्दुल्लाह के पास नवाबों के वक्त के दुर्लभ सामान होने की वजह से कई बड़ी बॉलीवुड फिल्मों में उनके सामानों का इस्तेमाल किया जा चुका है.उमराव जान फिल्म में उनके कई सामानों का इस्तेमाल किया गया था. इतना ही नहीं, मुजफ्फर अली जो कि फिल्म निर्माता हैं, लंबे वक्त तक नवाब जाफर अमीर अब्दुल्लाह की इसी हवेली में उनके साथ समय बिता चुके हैं. इसके अलावा कई फिल्मों में जैसे गदर, मोनी बाबा, सूटेबलबॉय, इशकजादे जैसी फिल्मों में भी उनके सामान के साथ-साथ उनके घर के बाहर खड़ी सफेद रंग की एंबेसडर कार का भी इस्तेमाल किया जा चुका है.
तीन बेटियां हैं नवाब साहब की
नवाब जाफर मीर अब्दुल्लाह की तीन बेटियां हैं. तीनों ही शादीशुदा हैं. नवाज साहब की पत्नी का निधन हो चुका है. वर्तमान में नवाब साहब हवेली में अपने भाई और उनकी बीवियां और कुछ सहयोगियों के साथ रहते हैं. स्वास्थ्य खराब होने के कारण वह अब घर से कम ही निकलते हैं. अब्दुल्लाह को 2016 में समाजवादी सरकार की ओर से यश भारती पुरस्कार मिल चुका है.
नवाबों के बर्तनों का इस्तेमाल हो रहा है
72 साल के नवाब जाफर मीर अब्दुल्लाह की हवेली में आज भी उन्हीं पीतल और तांबे के बर्तनों का इस्तेमाल हो रहा है, जिनमें उनके बाप दादे खाना खाया करते थे. इसके अलावा उनके घर में एक ऐसी पूड़ी बनती है जो कि सूजी की होती है, जो पूरे हिंदुस्तान में कहीं नहीं मिलती. यह नवाबों के वक्त की पूड़ी है और यह सिर्फ नवाब जाफर मीर अब्दुल्लाह के घर में ही मिलती है. कई बड़ी हस्तियां इनके घर पर आकर इस पूड़ी का स्वाद चख चुकींहैं.
नवाबी अब बस खानदानी रह गई है
नवाब जाफर मीर अब्दुल्लाह कहते हैं कि अब न तो कोई नवाब है न तो कोई राजा, सभी भारत के नागरिक हैं. नवाबी सिर्फ खानदानी रह गई है, जो नवाबों के वंशज वर्तमान में रह रहे हैं चाहे जहां भी रह रहे हैं सभी कोई ना कोई व्यापार कर रहे हैं और जिन्होंने सिर्फ नवाबी पर ध्यान दिया पढ़ाई लिखाई नहीं की. आज उनकी आर्थिक हालत बेहद खराब है. इसके अलावा उन्होंने खुद बीएससी, एलएलबी समेत उच्च शिक्षा हासिल की हुई है. वह बताते हैं कि उन्हें शिकार करने का भी बहुत शौक था और वह कई बार कई जानवरों का शिकार भी कर चुके हैं. इसके साथ ही उन्हें खाने और खिलाने का भी बहुत शौक है, हालांकि अब स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्होंने अपनी डाइट पर कंट्रोल कर लिया है.
यह दुर्लभ सामान है मौजूद
नवाब जाफर मीर अब्दुल्लाह की हवेली पर ऊंट की हड्डियों के बने कई सामान मौजूद हैं. साथ ही इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी के बने हुए खूबसूरत झालर भी मौजूद हैं, जो ब्रिटिश काल में भी इस्तेमाल की गई थीं. इसके अलावा नवाबों का पीतल, चांदी और तांबे का बना हुआ पान दान, हुक्का, घर के सभी तरह के बर्तन, आयत लिखी हुई अलग प्रकार की मिट्टी की प्लेटें, पुराने जमाने का टेलीफोन, ग्रामोफोन और नवाबों के वक्त के कई दुर्लभ सामान मौजूद हैं.जो आज भी आकर्षण का केंद्र है.
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FIRST PUBLISHED : June 22, 2022, 12:00 IST