1922 में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध असहयोग आंदोलन जोरों पर था- गांव के लोग तो संगठित थे ही उनके साथ आस-पास के गांवों भगौतापुर, अडगडहा, मधुकरपुर, हरैया के प्रमुख लोग भी संगठन में शामिल हो गए थे- गोरखपुर की ओर से आकर 13 कांग्रेसियों ने राजा चंगेरा के अत्याचार के खिलाफ सत्याग्रह शुरू कर दिया था- सत्याग्रह में मिठवल के बाबा ढो़ढे़ गिरि भी शामिल हो गए थे. अपनी योजना में असफल होने के बाद चंद्रशेखर आजाद पुलिस से बचते हुए इटवा रोड से होकर गोबरहवा पहुंचे और वहीं से चंद्रशेखर आजाद गायब हो गए. जाते समय उनकी धोती और गुप्ति, शेष दत्त त्रिपाठी के छूट गई थी. उन्होंने अपने एक बांसी निवासी स्वतंत्रता सेनानी मित्र लाला हरनारायण को पत्र लिखा था कि उनकी धोती और गुप्ति छूट गई है, उसे भेज दो. जानकार बताते हैं कि 15 दिन चंद्रशेखर आजाद के रुकने के बाद भी कोई उनके असली नाम से उन्हें पहचान नहीं पाया. 15 दिनों में ही चंदू के नाम से मशहूर हो गए थे, जिनसे मिलते थे, उन्हें अपना बना लेते थे और क्रांति की ज्वाला जला देते थे.