(अभिजीत अय्यर-मित्रा)
आठ सालों के शासन और नीतिगत मुद्दों पर कई यू टर्न के बाद भी ऐसा लगता है कि मोदी का चुनावी करिश्मा कायम है. जैसा कि एक टीवी एंकर का कहना है, “मोदी का भाषण और योगी का शासन” ने यूपी में बीजेपी की इस प्रचंड जीत को संभव बनाया. इन बातों को अगर छोड़ भी दें, तो वास्तविकता कहीं ज्यादा जटिल है. स्थानीय रूप से मिली जीत के लिए स्थानीय प्रशासन को श्रेय दिया जा सकता है, पर बीजेपी ने चार अलग राज्यों में केंद्र सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के अलावा जिस तरह से सत्ता-विरोधी लहर को मात दी है, वह क़ाबिले तारीफ़ है. इन कार्यक्रमों और नीतियों को लागू करने के लिए जिस तरह का तालमेल चाहिए, वह निश्चित रूप से केंद्र और राज्यों के बीच श्रेष्ठ तालमेल से संभव होता है. लेकिन मोदी की भूमिका को यहां न तो नज़रअंदाज़ किया जा सकता है और न अतिशंयोक्ति ही की जा सकती है.
तथ्य यह है कि जब आप सभी लोगों को शौचालय और बिजली का कनेक्शन देने की नीतियां बनाते हैं और इसके साथ-साथ डाटा तक सबकी पहुंच बनाने के लिए निजी क्षेत्र के सहयोग से इसकी शुरुआत करते हैं, तो इस प्रक्रिया में आप हर एक व्यक्ति के जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं. यह मुद्दा हमेशा रहा है कि हर मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्य में इन नीतियों को किस तरह लागू करता है क्योंकि उन्हें ही ऐसी किसी भी योजना और नीति को लागू करना होता है. यही वह समय होता है जब केंद्र और राज्य के बीच समन्वय की बात मायने रखती है.
उदाहरण के लिए, योगी आदित्यनाथ ने निर्णय किया कि वह राज्य की कानून-व्यवस्था में सुधार करेंगे. उन्होंने इस कार्य को काफी प्रशंसनीय तरीके से अंजाम दिया. ऐसा करते हुए उन्होंने मोदी का अनुसरण करते हुए शक्तियों को अपने कार्यालय में केंद्रित किया. उन्होंने शक्तियों के केंद्रीयकरण की जिम्मेदारी खुद उठायी और इसका उत्तरदायित्व भी अपने ऊपर लिया. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इस वजह से चुनाव में बीजेपी के वोट शेयर में वास्तव में काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ है, भले ही उसकी कुल सीटों की संख्या क्यों न कम हो गयी है. ऐसा लगता है कि समाजवादी पार्टी को सबसे ज़्यादा लाभ बसपा और कांग्रेस की सीटों में आयी कमी से हुआ है. यह सब इस बात की ओर संकेत करता है कि कुछ गलतियों के बावजूद बीजेपी का जनाधार मजबूत हुआ है.
ऐसे कौन से कदम गलत थे जो बीजेपी को चुनाव में प्रभावित कर सकते थे? इसमें पहला है- लॉकडाउन के दौरान उत्पन्न हुआ प्रवासी श्रमिकों का संकट. यह जानते हुए भी कि दिल्ली में कितनी भारी संख्या में श्रमिक यूपी से आते हैं और लॉकडाउन का लोगों पर जो भयानक असर हुआ था उसे देखते हुए, ऐसा लगता था कि इन बातों से बीजेपी के प्रदर्शन पर असर पड़ेगा. इस बात में संदेह नहीं कि इसके बाद से आर्थिक मामलों को जिस तरह से संभाला गया है, उसकी वजह से देश में विकास की गति ने जोर पकड़ा है. ऐसा लगता है कि इन मुश्किल हालातों से उपजे असर को इसने अपेक्षा से अधिक कम किया है. बीजेपी का वोट शेयर बढ़ने की बात से इसकी पुष्टि होती है.
फिर, कृषि क़ानून को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. इसके ख़िलाफ़ एक साल तक चले प्रदर्शन ने केंद्र सरकार को इन कानूनों को वापस लेने के लिए बाध्य किया है और यह अपमान का घूँट पीने जैसा था. इस बारे में जो भविष्यवाणी थी कि पंजाब में बीजेपी को इसका ख़ामियाजा भुगतना पड़ेगा. यह सच निकली पर पश्चिम उत्तर प्रदेश में इसका प्रभाव या तो सीमित रहा या फिर नहीं के बराबर रहा. यहां भी, इसका श्रेय जितना मोदी की राजनीतिक गणना को दिया जा सकता है, उतना ही उत्तर प्रदेश में इसे विध्वंसकारी होने के पूर्व रोके देने की योगी की क्षमता को जाता है.
और अंत में, यह माना जा रहा था कि हाथरस का मामला महिला वोट बैंक में काफ़ी व्यापक रूप से सेंध लगाएगा. इस वोट बैंक को तैयार करने का श्रेय उसी बिजली और शौचालय योजनाओं को जाता है. फिर तीन तलाक के क़ानून को समाप्त करने की पहल ने भी अपना योगदान दिया है जिसकी वजह से भारी संख्या में मुस्लिम महिलाओं ने बीजेपी को वोट दिया. इसी तरह, विभिन्न समुदायों, विशेषकर दलितों को एक जगह इकट्ठा कर पाने में अमित शाह की सफलता ने यूपी में बीजेपी को एक मजबूत ताक़त में तब्दील कर दिया है. यह माना जाता था कि हाथरस बलात्कार कांड पार्टी के महिला और दलित दोनों ही वोटों को प्रतिकूलत: प्रभावित करेगा. पर यह आशंका भी निराधार साबित हुई क्योंकि मोदी ने स्पष्ट रूप से विकास योजनाओं पर अपना ध्यान केंद्रित किया है और ऐसा लगता है कि इस वजह से पार्टी इन छोटी-मोटी मुश्किलों से उबर गयी.
इन सभी बातों से एक बात साफ़-साफ़ उभरती है कि अपने नौसिखिए प्रतिद्वंद्वियों के उलट, बीजेपी एक राजनीतिक जीव है. वह अपने प्रतिकूल जाने वाले सभी प्रभावों का बहुत ही सावधानी से आकलन करती है और उसका ध्यान इसके असर को कम करने के उपायों की तलाश पर लगा रहता है. वैसे राज्यों में बीजेपी को जो जीत मिली है उसका श्रेय उन राज्यों में उसके नेतृत्व को दिया जाना चाहिए पर इतना तो निश्चित है कि इसके लिए आधार मोदी ने तैयार किया है. टेनिस खेल की शब्दावली में कह सकते हैं : उत्तर प्रदेश में गेम योगी का, सेट बीजेपी का और मैच मोदी का.
(लेखक इंस्टट्यूट ऑफ पीस एंड कॉन्फ़्लिक्ट स्टडीज़ में सीनियर फ़ेलो हैं। आलेख में प्रस्तुत विचार उनके निजी विचार हैं। इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
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